ज़िन्दगी बीत जाती है इसी कोशिश में मगर,
ये ज़िन्दगी भला कब किसी को समझ में आती है ;
हर पल जो टूटती बिखरती सी रहती है ज़िन्दगी ,
एक मुलाकात में जाने कैसे संवर जाती है;
ख्वाबों में आके मिलो , दर्बार -ए -खास लगा है ,
हकीकत-ए -ज़िन्दगी तो दर्बार -ए -आम नज़र आती है ;
एक मुलाकात की ख्वाहिश जाने कैसे ज़िन्दा है अभी ,
वरना ज़िन्दगी तो ख्वाहिशों का कतल-ए-आम किये जाती है ;
कोई बंधा हुआ सा माप होता नहीं है इस का ,
इंतेजार जितनी लम्बी , या मुलाकात सी छोटी ये बन जाती है;
कभी इतनी लम्बी जैसे उम्र भर का साथ हो तेरा ,
कभी सिमट के तेरा नाम हो जाती है ;
रोज़ वही सुबह , शाम , और वही रात हो जाती है ,
पता भी नहीं चलता , ज़िन्दगी यूहीं तमाम हो जाती है ।
एक उम्र में ज़िन्दगी के मायने थे, लोगों से ये सुनना- मेरी सूरत मेरी माँ से मिलती है;
अब ज़िन्दगी बारह साल की हो गई … अब मायने बदल गए हैं….
अब ज़िन्दगी है लोगों से ये सुनना- तुम्हारी बेटी तुम सी दिखती है ।