बीते लम्हों के छाए जो बादल
आँखों में बरसात सा मंज़र हुआ;
वहीं होठों पर खिली मीठी सी धूप
ये नज़ारा रह रह कर अक्सर हुआ;
ख्वाबों को जहाँ दफ़्न किये इक अरसा हुआ
वहीं कल रात हंगामा जमकर हुआ;
सब टूटा बिखरा शोर हुआ, सुना नहीं?
छोड़ो, जाने दो, सब यहीं (मेरे) अंदर हुआ;
रिश्तों की कश्ती बस डूबी ही समझो
अरमान जहाँ तूफ़ान, दिल समन्दर हुआ;
तेरे इश्क का जुनूँ तुझे क्या दिखाते,
ये तमाशा तो मुझसे भी छुपकर हुआ।